आओ मिल कर एक ख्वाब बुनें।
वर्तमान के पन्नों पर इस रिश्ते क इतिहास लिखें।
हर एक पल की बात लिखें, हर एक पल का एहसास लिखें।
और अतीत की बगिया से सुख-स्मृतियों के फ़ूल चुनें।
आओ मिल कर एक ख्वाब बुनें।
जो पहर अकेले काटे हमने।
दुःख और ख़ुशियां जो बांटे हमने।
उन सब से तैयार करें हम प्यार की मीठी नयी धुनें।
आओ मिलकर एक ख्वाब बुनें।
इस हृदय से उस हृदय तक प्रेम की सरिता बहायें।
भीग कर के उसमें फ़िर हम एक दूजे में समायें।
पहरों अकेले बैठ कर उन लहरों का संगीत सुनें।
आओ मिल कर एक ख्वाब बुनें।
Saturday, September 15, 2007
ख्वाब बुनें
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2 comments:
बढिया लगे रहो ब्लागवाणी के रोल में नहीं आ रहे हो उसमें लॉग कर दो
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