Friday, September 28, 2007

लानत है ऐसे जीवन पर

सीता और मीरा के देश में वस्त्र नहीं औरत के तन पर।
लानत है ऐसे जीवन पर। लानत है ऐसे जीवन पर।

है उसी जवानी का मतलब जो काम किसी के आती है।
सुंदरता तब ही भाती है जब थोड़ा शर्माती है।
अबतक जिनने हमसे सीखा आज पढ़ाते पाठ हमे वो।
कभी थे जो कि शिष्य हमारे आज दिखाते ठाठ हमें वो।
और हमारी किस्मत देखो हम इतराते उनकी उतरन पर।
लानत है ऐसे जीवन पर। लानत है ऐसे जीवन पर।

कहाँ गई सभ्यता हमारी कहाँ गया ईमान हमारा।
कहाँ गई सौम्यता हमारी कहाँ गया सम्मान हमारा।
शर्म हया सब छोड़ कर पीछे कहते हैं कि यह फैशन है।
पहन के कम कपड़े हम गर्व से कहते हैं कि यह फैशन है।
जिसमें पूरा तन नहीं छिपता हम मरते हैं उस फैशन पर।
लानत है ऐसे जीवन पर। लानत है ऐसे जीवन पर।

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© Vikas Parihar | vikas