नाम पर विश्वास के दीवार बनाई तूने।
हर पल मेरे विश्वास को एक ठेस लगाई तूने।
मैं तो तेरे हर सपने को सच बना देता।
हमारे बीच की दीवार हर गिरा देता।
पर गया वक़्त कभी लौट कर आता नहीं,
और गये वक़्त की दूरी न मिटाई तूने।
मैं तो पागल हूं जो दीवार गिराने निकला।
जो नहीं अपना उसे अपना बनाने निकला।
चलो जैसा भी हूं मैं, पर अच्छी निभाई तूने,
उसी दीवार में एक ईंट लगाई तूने।
Saturday, September 29, 2007
विश्वास की दीवार
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