क्यों चुप है बांसुरी कृष्ण की?
क्यों मौन है भीम की गदा?
क्यों सामने कौरवों के दोस्तो,
झुक रहे हैं पांडवों के सर सदा?
कहाँ चला गया समाँ हसीन सा?
क्यो लग रहा है चहरा हर मलीन सा?
क्यों बारूद उग रही यहां ज़मीन में?
क्यों पल रहे हैं साँप आस्तीन में?
सत्य के द्वार सब हैं बंद क्यों?
हैं आतंकियों के हौसले बुलंद क्यों?
क्यों देश भ्रष्टाचार का गुलाम है?
क्यों हर दिशा में मच रहा कोहराम है?
क्यों हर तरफ यह घोर अंधकार है?
क्यों आदमी हर चोर और बटमार है?
बिक रहा है नाम राम का क्यों इस जहान में?
कोई तो समझे जो है वेदना इस गान में।
लग रहा है अंत होगा लेकर बस यह भार दिल पर।
कि कभी मिल जायेंगे मुझको मेरे इन क्यों के उत्तर।
काश बन कर साँसें पहुंचे हर हृदय में गान मेरा।
और फिर सोने की चिडिया बने हिंदुस्तान मेरा।
Wednesday, September 26, 2007
कुछ प्रश्न
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