मुझको तुम दुत्कार भले दो,
सच को कैसे छिपाओगे।
काले धब्बे दिख जायेंगे,
जब उजले में आओगे।
ऊंचे तबके पर जो बैठे,
अपना हुक्म चलाते हैं।
नीचे वालों का पेट काटकर,
अपना महल सजाते हैं।
है गवाह इतिहास यहां पर,
अच्छे अच्छे टूट गये।
पड़ा हथोड़ा समय का जब भी,
सबके छक्के छूट गये।
पता चलेगा जिस दिन सच का,
उस दिन तुम पछताओगे।
मुझको तुम दुत्कार...........।
ऊपर वाला जब भी देता,
देता छप्पर फाड़।
और अगर लेने पर आये,
लेता जेबें झाड़।
उसके सबक सिखाने का है,
अपना इक अंदाज़।
उसकी लाठी जब भी पड़ती,
नहीं करती आवाज़।
जिस दिन चोट लगेगी तुमको,
तुम भी उठ न पाओगे।
मुझको तुम दुत्कार............।
Thursday, September 27, 2007
जब उजले में आओगे
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