Tuesday, September 25, 2007

न खत्म कभी वो रात हो


बदन तेरा चांदी सा ज़ुल्फ तेरी स्वर्णिम-स्वर्णिम।
आवाज़ तेरी जैसे नदिया की कल-कल मधुरिम-मधुरिम।
मन करता है मेरा तुझ पर कविता कोई बनाऊं मैं।
पर तेरी सुंदरता के लिये शब्द कहाँ से लाऊं मैं।
मुझको यकीं है इस जग में ना है कोई तुझसे सुंदर।
तेरी सुंदरता, सुंदरता को देती प्रतिपल उत्तर।
चाँद में तो है दाग मगर तेरे चेहरे पर कोई दाग नहीं।
तेरे तेज से बढ़ कर जग में कोई दूजी आग नहीं।
तेरी आँखें मुझको जीवन की अभिलाषायें देतीं।
हर पल मुझको तुझको पाने की नवीन इच्छाएं देती।
एक रात ऐसी भी मिले जब हम दोनों का साथ हो।
पर ऐसा भी हो कि फिर ना खत्म कभी वो रात हो।

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© Vikas Parihar | vikas