Saturday, October 13, 2007

कुर्सी ज़िन्दाबाद

यहाँ सभी के दर्शन छोटे और बड़े हैं नाम,
कि कुर्सी ज़िन्दाबाद।
रखते हैं सब बगल में छुरी और अधरों पर राम,
कि कुर्सी ज़िन्दाबाद।

न दुआ चले न दवा चले।
बस आए पैसे की खुश्बू,
जब-जब भी यहाँ पर हवा चले।
यहाँ पैसे से हो हर काम,
कि कुर्सी ज़िन्दाबाद।

कहने को है यह लोकतंत्र।
जो है विकास का मूलमंत्र।
पर इन खद्दर वालों ने,
किया इसका काम तमाम,
कि कुर्सी ज़िन्दाबाद।

यहाँ ईमानदारी की छाप हैं डंडे।
अच्छे-अच्छों के बाप हैं डंडे।
यहाँ सब डंडे को करे सलाम,
कि कुर्सी ज़िन्दाबाद।

2 comments:

Divine India said...

समसामयिक कविता है…
हर पंक्तियाँ सच का द्वार खोल रही हैं…
बस अब समझिए कि आपकी सोंच
सफल हुई…।

Udan Tashtari said...

बढ़िया!!

कुर्सी ज़िन्दाबाद।

© Vikas Parihar | vikas