एक दिन एक लड़की यूं ही चली जा रही थी।
मन ही मन शायद कोई गीत गा रही थी।
तभी अचानक वो एक लड़के से टकराई।
और सम्भलते ही उस लड़के पर गुर्राई।
निर्दोष होने पर भी वह सब कुछ सुनता रहा।
और लड़की से एक शब्द भी नहीं कहा।
लड़की स्थिति भाँप गई कि लड़का शर्मिन्दा है।
वह तो शहर का सीधा सादा सभ्य बाशिन्दा है।
तो स्थिति सुधारने के लिए लड़की ने,
एक के बाद एक व्यंग्य बाण सरकाया।
लड़का कोछ कहे बिना ही,
उन पर मंद-मंद मुस्काया।
लड़की ने फिर कहा आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं।
मैं ही मैं बोले जा रही हूं आप कुछ नही फरमा रहे हैं।
इस पर लड़के के सब्र के बांध टूट गए।
उसके कण्ठ से कुछ स्वर फूट गए।
उसने अपने चेहरे को किया संजीदा,
और हँसी को किया सीज़।
और धीरे से कहा,
मडम वंस मोर प्लीज़।
Sunday, October 14, 2007
वंस मोर प्लीज़
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2 comments:
हा हा!! बहुत बेहतरीन, विकास. बधाई. ऐसे ही लिखते रहें.
हा हा, मजेदार। कमाल का छोरा था। :)
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