अजी देखो तुम यूं न इतराके जाओ।
अपने दीवाने को अब न सताओ।
कभी तो मुझे प्यार से देख लो तुम,
कभी तो मुझे देख कर मुस्कुराओ।
ये माना ज़माना है तेरा दीवाना,
मगर तुमको न कोई मुझ सा मिलेगा।
ये भी माना कि तुमने देखे हज़ारों,
मगर इक दफा तो मुझे आज़माओ।
हवाएँ फिज़ाएं हँसीं ये नज़ारे।
सभी तो हैं महके करम से तुम्हारे।
मेरा भी जीवन महकने लगेगा,
दिलबर मुझे तुम जो अपना बनाओ।
निगाहों में उसकी वो खंज़र छिपे हैं,
कि बचना जो चाहो तो बच न सकोगे,
मुझे भि बनाया है उनने निशाना,
मौला मुझे उस कहर से बचाओ।
Tuesday, October 30, 2007
अजी देखो तुम
लेखक:- विकास परिहार at 12:36
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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5 comments:
lo dudo mucho, pero.. sabes español?
Hello friend, I would love to know your poetry. We live far apart, and our lives are very different, but we are united in human poetry.
That type? , Where are you? ,
Greetings from your friend
01
सही है.
सही है.
Ok, my friend. It did what I asked.
Now you can read my poems. Now what I am looking for is how to read yours
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