दिल में उथल-पुथल है,
मन में मची है हलचल।
ऐ मौत मुझे ले, ऐ मौत मुझे ले चल।
Tuesday, October 23, 2007
ऐ मौत मुझे ले चल
लेखक:- विकास परिहार at 15:52
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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दिल में उथल-पुथल है,
मन में मची है हलचल।
ऐ मौत मुझे ले, ऐ मौत मुझे ले चल।
लेखक:- विकास परिहार at 15:52
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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© Vikas Parihar | vikas
4 comments:
विकास जी , टिप्पणी देने का शायद पहला अवसर है ... मौत को बुलाने वाला क्या पलायन वादी है या अन्धेरों से गुज़र कर कुछ नया कर दिखाने का ज़ज़्बा ...
शुभकामानाएँ
मीनाक्षी जी यह मृत्यु का आह्वाहन करने वाला पलायनवादी तो कत्तई नहीं है। जहाँ तक अन्धेरों की बात है तो मेरा मानना है कि अन्धेरे का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नही होता क्यों कि प्रकाश का न होना ही अन्धकार है। और जहाँ तक मृत्यु की बात है तो मेरा मानना है कि तथाकथित जीवन मृत्यु की ही एक धीमी और लंबित क्रिया है। मृत्यु मे वही क्रिया पूर्ण होती है जिसका आरंभ जन्म से हुआ है।
क्षणिका और तुम्हारी टिप्पणी पढ़कर गहरे दर्शन की अनुभूति हो रही है.
बहुत बढिया!
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