Wednesday, October 3, 2007

यह शहर एक पल में

यह शहर एक पल में ये कैसा बेगाना हो गया।
देखे हुए किसी अपने को एक ज़माना हो गया।

वो एक पल कि जब देखा तुझे रात में बरसात की,
वो ही पल था जब से मैं तेरा दीवाना हो गया।

हर लफ्ज़ पर आँसू हैं और हर तर्ज़ पर गम है,
नग्मा-ए-मोहब्बत यहां गम का फसाना हो गया।

यह भी न पता चला कि कब हुए हालात ये,
दिल्लगी मेरे लिए दिल का लगाना हो गया।

सोचते थे तेरी गलियों में न रखेंगे कदम,
पर तेरी गलियों मे भी मेरा आना जाना हो गया।

3 comments:

Divine India said...

नग्मा-ए-मोहब्बत यहां गम्क का फसाना हो गया…।
वाहSSSS बहुत ही खूबसूरत… बहुत ही सजीव चित्रण हुआ है… दाद देनी होगी…।

रवीन्द्र प्रभात said...

काफ़ी गंभीर अनुभूति मोहब्बत की, अत्यंत उत्कृष्ट और प्रशंसनीय भी.पंक्तियाँ अच्छी है, पढ़कर अच्छा लगा .

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया भाव हैं, विकास. गज़ल की बारीकियों को समझने के लिये यह ब्लॉग पढ़ा करो. उम्मीद है पसंद आयेगा:

http://subeerin.blogspot.com/

बहुत अच्छी क्लासेस लग रही हैं वहाँ.

© Vikas Parihar | vikas