क्या कहूं किससे कहूं मैं कुछ समझ आता नहीं।
सब दवाएं देख लीं पर दर्द-ए-दिल जाता नहीं।
रह गुज़र में अब तो मैं चुपचाप चलता ही चला,
गीत कैसे गाऊं मैं जब साथ कोई गाता नहीं।
बे वज़ह है आपके इकरार का दिल को यकीं,
मैं भी अपने दिल को अब यार बहलाता नहीं।
जिसको भी है मय की ख्वाहिश जाए वो साकी के दर तक,
पास प्यासे के कभी भी मयकदा आता नहीं।
शब भर करी थी बात जिसने मेरे हमदम की तरह,
सुबह कहता है कि मुझसे उसका कोई नाता नहीं।
प्यार करने वाले अक्सर डूब जाते हैं भंवर मे,
इश्क के दरिया मे कभी साहिल कोई पाता नहीं।
Saturday, November 17, 2007
क्या कहूं किससे कहूं
लेखक:- विकास परिहार at 23:37
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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1 comment:
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
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